दलित और आदिवासी वोटों के समीकरण से किंगमेकर बनना चाहती हैं मायावती!

 दलित और आदिवासी वोटों के समीकरण से किंगमेकर बनना चाहती हैं मायावती!
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बीएसपी चीफ मायावती का स्टैंड अब तक एकला चलो वाला रहा है. बीएसपी ने 2024 लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने का फैसला किया है. मायावती न एनडीए में हैं और न ही ‘इंडिया’ गठबंधन में. वो अकेले अपने दम पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी हैं. एमपी और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में मायावती ने गठबंधन किया. दोनों राज्यों में बीएसपी ने गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के साथ चुनावी तालमेल किया. दलित और आदिवासी वोटों के समीकरण से मायावती किंगमेकर बनना चाहती हैं.मायावती का मानना है कि अगर राज्यों में किसी पार्टी को बहुमत न मिला तो फिर सत्ता की चाबी उनके पास होगी. मायावती पहले ही एलान कर चुकी हैं कि इस बार उनकी पार्टी सरकार में शामिल होगी. इससे पहले एमपी और राजस्थान में बीएसपी ने कांग्रेस को बाहर से समर्थन दिया था. राजस्थान में तो उनके सभी छह विधायक बाद में कांग्रेस चले गए थे.मायावती अभी दिल्ली में हैं. राज्यों में विधानसभा चुनाव खत्म होते ही वो आम चुनाव की तैयारी में जुट गई हैं. महाराष्ट्र को लेकर वो एक बैठक भी कर चुकी हैं. महाराष्ट्र में उनकी नजर उन सीटों पर है, जहां पार्टी को एक लाख वोट मिलते रहे हैं. उनके भतीजे आकाश आनंद 29 नवंबर को औरंगाबाद का दौरा करेंगे. पूर्व राज्य सभा सांसद और नेशनल कोऑर्डिनेटर अशोक सिद्धार्थ वहां के प्रभारी हैं. ये सीट अभी असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM के पास है।

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इम्तियाज जलील यहां से लोकसभा के सांसद हैं. मायावती ने आकाश आनंद को जगह जगह जाकर सभाएं और मीटिंग करने को कहा है.मायावती के लिए उनका सबसे मजबूत गढ़ ही उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती है. यूपी के लिए क्या करें ! मायावती अकेले चुनाव लड़ना चाहती हैं. लेकिन पार्टी के अधिकतर नेता गठबंधन के पक्ष में हैं. लेकिन बीएसपी चीफ को ये बताने की हिम्मत कौन करे ! पार्टी से लोकसभा के एक सांसद ने कहा कि बिना गठबंधन के हमारा भविष्य चौपट हो सकता है. पिछले चुनाव में बीएसपी का समाजवादी पार्टी से गठबंधन था. उस चुनाव में बीएसपी के दस नेता चुनाव जीतने में कामयाब रहे. बाद में गाजीपुर से सांसद अफजाल अंसारी को सजा हो गई. फिर उनकी सदस्यता भी चली गई. पिछले चुनाव में दस सीटें लेने वाली बीएसपी का 2014 के चुनाव में खाता तक नहीं खुला था. पार्टी के बाकी बचे नौ सांसदों में से कई अब समाजवादी पार्टी से लेकर कांग्रेस के संपर्क में हैं।

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