वक्फ बोर्ड में गैर मुस्लिमों का होना स्वीकार्य नहीं,तमिलनाडु वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष ने दिया बड़ा बयान
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केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने संसद में वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक पेश किया. कांग्रेस और डीएमके समेत विपक्षी दलों द्वारा इस संशोधन का कड़ा विरोध किए जाने के बाद केंद्र सरकार ने विधेयक को 21 सदस्यीय संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजने की सिफारिश की है।वक्फ बोर्ड की संपत्तियों के प्रबंधन के लिए 1954 में वक्फ अधिनियम बनाया गया था. बाद में 1995 में वक्फ बोर्डों को अतिरिक्त अधिकार देने के लिए अधिनियम में संशोधन किया गया. इसके बाद 2013 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार ने भी कानून में संशोधन किया।तमिलनाडु वक्फ बोर्ड के चेयरमैन अब्दुल रहमान ने वक्फ बोर्ड एक्ट के बारे में मीडिया से कहा की ‘इस्लामिक समाज के पूर्वजों ने अपनी संपत्ति लोगों के इस्तेमाल के लिए दी थी।
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आज वक्फ संपत्तियों की यही स्थिति है. इनकी समुचित निगरानी के लिए 1954 में वक्फ बोर्ड अधिनियम बनाया गया. बाद में संबंधित राज्य सरकारों की देखरेख में राज्यों के वक्फ बोर्ड बनाए गए और 1995 में अधिनियम को अंतिम रूप दिया गया. इसे बेहतर ढंग से क्रियान्वित करने के लिए 2013 में पुनः कानून संशोधन लाया गया और यह बहुत अच्छे ढंग से कार्य कर रहा है।इसलिए दूसरे धर्म के लोगों को वक्फ बोर्ड में सदस्य बनाने की कोई जरूरत नहीं है. अगर हम इस कानून के खिलाफ हैं, तो इसका मतलब यह नहीं है कि गैर-मुस्लिम इसके खिलाफ हैं. मंदिरों, चर्चों को अपने-अपने धर्मों का पालन करना चाहिए. वे इसे सही तरीके से करेंगे. कानून यह देखने के लिए है कि वक्फ प्रणाली कैसे काम करती है. अगर मुसलमान वक्फ बोर्ड में अच्छा प्रदर्शन नहीं करते हैं, तो उन्हें भी दंडित किया जाना चाहिए।