हेमंत सोरेन के इस रणनीति के आगे बीजेपी हो जाएगी धराशायी!भगवा को मात देने के लिए खोज लिया नई तरीका
झारखंड विधानसभा चुनाव को लेकर नॉमिनेशन की शुरुआत हो चुकी है. दूसरे चरण में भी जिन सीटों पर वोट डाले जाएंगे उन सीटों पर भी आज से नामांकन प्रक्रिया की शुरुआत हो गयी है. एनडीए में सीटों के बंटवारे पर फैसला हो चुका है।सभी दल ने अपने अधिकतर प्रत्याशियों के नाम का भी ऐलान कर दिया है. वहीं दूसरी तरफ इंडिया में भी सीटों को लेकर लगभग सहमति बन गयी है. हालांकि आधिकारिक ऐलान अभी बाकी है।हेमंत सोरेन ने लंबे समय के बाद गठबंधन के लिए ऐसे दलों को तरजीह दी है. जिनके साथ एक दौर में जेएमएम के अच्छे रिश्ते रहे थे. झारखंड में जेएमएम इस चुनाव में भाकपा माले के लिए 4-5 सीट छोड़ने के लिए लगभग तैयार है. भाकपा माले 2019 के चुनाव में महागठबंधन का हिस्सा नहीं रही थी. हाल ही में भाकपा माले में झारखंड अलग राज्य आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाली ए.के. रॉय की पार्टी मासस का विलय हुआ है. जिसके बाद उसके आधार वोट में मजबूती आयी है. ये ऐसे दल हैं जो लंबे समय तक जेएमएम को बिना शर्त समर्थन करते रहे हैं।हाल ही में हेमंत सोरेन के साथ माले नेताओं की बातचीत की एक तस्वीर सामने आयी थी. भाकपा माले के नेता और सिंदरी से पार्टी के संभावित प्रत्याशी चंद्रदेव महतो ने सोशल मीडिया साइट एक्स पर लिखा था कि आदरणीय हेमंत सोरेन जी के साथ विधानसभा चुनाव को लेकर सकारात्मक बातचीत हुई।
इसके साथ ही कई सीटों पर जेएमएम और भाकपा माले के कार्यकर्ताओं की संयुक्त बैठकों का दौर शुरु हो गया है।झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना ए.के. रॉय, बिनोद बिहारी महतो और शिबू सोरेन ने की थी. उस दौरान मार्क्सवादी समन्वय समिति के तौर पर एक राजनीतिक दल अस्तित्व में था और जेएमएम की स्थापना दवाब समूह के तौर पर हुई थी. बाद के दिनों में जेएमएम की संसदीय राजनीति में एंट्री हुई लेकिन मार्क्सवादी समन्वय समिति और जेएमएम के कैडर लगभग एक ही रहे. चुनावों में दोनों दल एक ही सिंबल पर चुनाव लड़ते थे. इस गठजोड़ ने अविभाजित बिहार के झारखंड हिस्से में अच्छी सफलता पायी थी. 1985 के विधानसभा चुनाव में 20 सीटों पर जेएमएम और मासस के उम्मीदवारों को जीत मिली थी. एक बार फिर हेमंत सोरेन ने पुराने गठजोड़ को वापस लाया है. इस गठजोड़ को देश भर में ‘लाल हरा मैत्री’ के नाम से जाना जाता था।