बिहार में खोए हुए जनाधार को वापस ला पाएंगे राहुल गांधी?करने वाले हैं अब जमकर मेहनत!

 बिहार में खोए हुए जनाधार को वापस ला पाएंगे राहुल गांधी?करने वाले हैं अब जमकर मेहनत!
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कांग्रेस बिहार में अपना आधार बनाने की कोशिश में जुटी हुई है. उसका अब अपना कोई वोट बैंक नहीं रह गया है. वह मुख्यतौर पर अपने सहयोगी दलों और अपने नेताओं की व्यक्तिगत छवि के आधार पर बिहार में जिंदा है. लेकिन पार्टी अब इस स्थिति को तोड़ना चाहती है. उसकी नजर दलित, अति पिछड़ा वर्ग और मुसलमानों पर है. बिहार में दलितों को अपनी ओर करने के लिए कांग्रेस संविधान और आरक्षण को खतरे में बता रही है. इससे दलितों और उन जातियों को अपने पक्ष में लामबंद किया जा सकता है, जिसका वास्ता आरक्षण से है. संविधान के जरिए ही कांग्रेस मुस्लिमों को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रही है. इसलिए ही कांग्रेस ने वक्फ बिल का संसद और संसद के बाहर जोरदार विरोध किया है. कांग्रेस की इन कोशिशों का उन्हें फायदा होता हुआ भी नजर आया है. लोकसभा चुनाव में वह तीन अंक में सीटें लाने के करीब पहुंच गई है. दलित और मुसलमानों का एक तबका कांग्रेस के पीछे लामबंद हो रहा है. अभी इन दोनों वर्गों की राजनीति करने वाला कोई दल नहीं है।बिहार में कांग्रेस की इन कोशिशों का नुकसान उसकी सहयोगी राष्ट्रीय जनता दल को उठाना पड़ सकता है.

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क्योंकि बिहार में राजद के वोट बैंक में मुसलमानों का स्थान बहुत अधिक है. वह बिहार में अति पिछड़ा वर्ग और दलितों में भी अपनी पैठ बनाने की कोशिशें करती हुई नजर आती है. ऐसे में वोट बैंक की इस लड़ाई में दोनों सहयोगी दलों में मनमुटाव भी पैदा कर सकता है.कांग्रेस और राजद के रिश्ते को समझने के लिए पिछले साल लोकसभा चुनाव की एक घटना को देख सकते हैं. दरअसल बाहुबली नेता पप्पू यादव ने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर लिया था. कांग्रेस उन्हें पूर्णिया सीट से उम्मीदवार बनाना चाहती थी, लेकिन राजद ने वहां से अपना उम्मीदवार उतार दिया. इसकी वजह से पप्पू यादव को निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ना पड़ा.वो जीते भी.कांग्रेस को इससे फायदा होता है या नुकसान, यह तो अभी नहीं कहा जा सकता है, लेकिन कांग्रेस अपनी स्थिति को सुधारने की कोशिश करते हुए दिख तो रही ही है।

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