मजबूत विपक्ष की भूमिका निभाएगी आम आदमी पार्टी,दिल्ली की सल्तनत में बीजेपी दिखाएगी अपनी दम

दिल्ली के विधानसभा चुनाव में सिर्फ आम आदमी पार्टी को ही सत्ता नहीं गंवानी पड़ी बल्कि अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया भी अपनी-अपनी सीट गंवा दी है. अन्ना आंदोलन से सियासी पिच पर उतरे अरविंद केजरीवाल ने अपने पहले ही चुनावी डेब्यू मैच से सत्ता के बाजीगर बनकर उभरे थे. पिछले एक दशक में आम आदमी पार्टी ने दिल्ली के साथ पंजाब में बहुमत की सरकार बनाने के साथ राष्ट्रीय पार्टी बनने का सफर पूरा किया, लेकिन इस बार दिल्ली की सियासत में चौका लगाने से चूक गई।दिल्ली की सल्तनत पर 11 साल तक काबिज रही आम आदमी पार्टी को विधानसभा चुनाव में करारी मात खानी पड़ी है. आम आदमी पार्टी 22 सीटों पर सिमट गई है तो बीजेपी 48 सीटों से साथ 27 साल बाद सत्ता में वापसी करने में कामयाब रही.

चुनावी हार ने केजरीवाल के दिल्ली विकास मॉडल की हवा निकाल दी है तो साथ ही आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय फलक पर भर रही सियासी उड़ान पर ब्रेक लगने का खतरा मंडराने लगा है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि अब अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी का सियासी भविष्य क्या होगा?दिल्ली के सत्ता की तस्वीर पूरी तरह से बदल गई है. 27 सालों से विपक्ष में बैठने वाली बीजेपी अब सत्ता में प्रचंड बहुमत के साथ काबिज रहेगी. आम आदमी पार्टी 11 साल तक दिल्ली की सत्ता में रही है और पहली बार विपक्ष में बैठेगी. सत्ता में रहते हुए केजरीवाल ने विपक्षी नेताओं को मार्शल के जरिए सदन से बाहर निकालवा देते थे. केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और सौरभ भारद्वाज जैसे दिग्गज नेता चुनाव हार गए हैं, जिनकी गैर-मौजूदगी में विधानसभा में विपक्ष के नेता कौन होगा. गोपाल राय और आतिशी चुनाव जीत गए हैं. ऐसे में सदन में पुरजोर तरीके से बीजेपी सरकार के खिलाफ आवाज उठानी होगी, जिसे कौन धार देगा।आम आदमी पार्टी के दिल्ली में सत्ता में रहते हुए केजरीवाल को अपने विधायकों को बचाए रखना मुश्किल पड़ रहा था और अब विपक्ष में रहते हुए उनको साधे रखना आसान नहीं होगा. आम आदमी पार्टी की बीजेपी, कांग्रेस, समाजवादी या कम्युनिस्ट पार्टी की तरह कोई एक विचारधारा नहीं है. इसका गठन सत्ता में आने के लिए हुआ था. ऐसे में पार्टी के लिए बिना किसी ठोस विचारधारा के विपक्ष में रहना भी एक चुनौती होगी।