हिंदू शब्द का वेदों के साथ स्मृतियों,पुराणों और तंत्र साहित्य में भी मिलता है उल्लेख,बोले शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती
ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि हिंदू शब्द प्राचीन है। वेदों में भी इसके प्रमाण हैं और वर्णन भी मिलता है। हिंदू शब्द को लेकर जो भ्रामक प्रचार किया जा रहा है वह गलत है। हिंदू शब्द के लिए होने वाले इस दुष्प्रचार का निवारण महाकुंभ में ही होगा। हिंदू शब्द का वेदों के साथ ही स्मृतियों, पुराणों और तंत्र साहित्य में भी उल्लेख मिलता है।सेक्टर 19 मोरी रोड पर आयोजित परमधर्मसंसद 1008 में हिंदू और हिंदू आचार संहिता पर चर्चा के बाद परमधर्मादेश जारी हुआ। शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि हिंदू शब्द आधुनिक या विदेशियों की देन नहीं है। भारत के विभाजन के समय हिंदू शब्द के दुष्प्रचार से कई लोगों ने अपने को हिंदू न गिनवाकर आर्य गिनवाया।
यही कारण है कि हिंदुओं की संख्या कम होने से पंजाब का वह प्रांत जो हिंदुस्तान में रहना चाहिए था, पाकिस्तान में चला गया।परमधर्मसंसद 1008 सभी सनातन वैदिक हिंदू आर्य परमधर्म के मानने वालों के लिए यह परमधर्मादेश जारी करती है कि हिंदू शब्द वैदिक है और वेदों से ही उत्पन्न हुआ है। एक मात्र हिंदू संस्कृति में ही यज्ञ, यागादि, सर्वविध इष्टापूर्त सम्बन्धी अनुष्ठानों में, श्राद्धादि पितृकार्य में, आयुर्वेदिक उपचारों में गाय का दूध ही ग्राह्य माना जाता है। अन्य लोग तो केवल दूध मात्र के इच्छुक हैं फिर चाहे वह पशु को डरा-धमका कर अथवा मशीनों के द्वारा ही जबरदस्ती क्यों न निकाला गया हो।”हिङ्कृण्वती दुहाम्” शब्दोंमें वत्सदर्शनसंजातहर्षा-अतएव प्रसन्नता सूचक ”हिं हिं”शब्द करती हुई गाय का दोहन करने वाली हिंद जाति का निर्वचन पूर्वक हिं-दु शब्द बना है। हिंकार करती गाय को दुहने वाली जाति हिंदू है। शंकराचार्य ने कहा कि अथर्व वेद और स्मृति के अनुसार हिंसा से जो दुखी होता है। सदाचार के लिए जो तत्पर है ऐसे गाय, वेद और प्रतिमा की सेवा करने वाले वर्णाश्रमधर्मी हिंदू हैं। इसलिए हिंदू वह है जो हिंसा से दूर रहे,सदाचार में तत्पर हो,गो सेवक, वेदनिष्ठ,मूर्तिपूजा में श्रद्धान्वित और वर्णाश्रम पालक हो।शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि सनातन वैदिक हिंदू धर्म की आचार संहिता में आचार्य स्नातक को माता-पिता, आचार्य और अतिथि को देव मानकर उनकी सेवा करने का विधान है। वृद्ध स्मृति तैत्तिरीय उपनिषद की शिक्षावल्ली में इसका वर्णन मिलता है। यज्ञ, श्राद्ध, वेद अध्ययन हिंदुओं की आचार संहिता का मूल है। हिंदुओं को इसी अनुसार वेद, स्मृति और सदाचार के अनुसार आचरण करना चाहिए।परमधर्म संसद में शंकराचार्य ने कहा कि हर हिंदू को सामान्य धर्मों का पालन करने के साथ-साथ अपना नाम, पिता, दादा का नाम, गोत्र, प्रवर, वेद, शाखा, शिखा, सूत्र, कुलदेवी, देवता की जानकारी होना जरूरी है। इसके साथ ही कंठी या जनेऊ संस्कार, तिलक, चोटी धारण करना और हिंदू तिथि से मनाए जाने वाले पर्व मनाना अनिवार्य है।