15 नवंबर को होगी एशिया पैसिफिक इकोनॉमी फोरम की बैठक,भारत के लिए कई चुनौतियां है सामने!
15 नवंबर को एशिया पैसिफिक इकोनॉमी फोरम (APEC) की 30वीं बैठक होने जा रही है. इस बार इस बैठक को सेन फ्रांसिस्को में आयोजित किया जा रहा है. एपीईसी 21 पैसिफिक रिम सदस्य अर्थव्यवस्थाओं का एक मंच है जो पूरे एशिया प्रशांत क्षेत्र में मुक्त व्यापार को बढ़ावा देता है.भारत इन 21 देशों के समूह में शामिल नहीं है, लेकिन 1990 के दशक से भारत इस फोरम में पर्यवेक्षक यानी आब्जर्वर की भूमिका निभाता रहा है. आज इस स्टोरी में हम जानेंगे क्यों भारत के लिए एशिया पैसिफिक इकोनॉमी फोरम में शामिल होना जरूरी हो और इसके बीच क्या अड़चने आ रही हैं।
क्या है एशिया पैसिफिक इकोनॉमी फोरमAPEC या एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग की स्थापना 1989 में सदस्य देशों या अर्थव्यवस्थाओं के बीच सतत विकास और बेहतर आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से एक क्षेत्रीय आर्थिक मंच के रूप में की गई थी.एशिया पैसिफिक इकोनॉमी फोरम या एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग में 21 देश शामिल हैं. जिन्हें 21 पैसिफिक रिम सदस्य की अर्थव्यवस्थाओं का एक मंच माना जाता है. ये रिम सदस्य पूरे एशिया-प्रशांत क्षेत्र में मुक्त व्यापार को बढ़ावा देते हैं.इन 21 देशों में ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जापान, मलेशिया, फिलीपींस, यूएसए, थाईलैंड, सिंगापुर, ब्रुनेई दारुस्सलाम, इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया, न्यूजीलैंड इसके संस्थापक सदस्य हैं तो वहीं 1991 के बाद हांगकांग, चीनी ताइपे, चीन, मेक्सिको, पापुआ न्यू गिनी, चिली, रूस, वियतनाम जैसे देशों ने इसकी सदस्यता ली.भारत ने 1990 के दशक से APEC में शामिल होने का प्रयास कर रहा है, लेकिन वो आज भी इसमें आब्जर्वर बना हुआ है. इसके लिए भारत 2000 के दशक से इस क्षेत्र के साथ व्यापार और निवेश संबंधों का विस्तार कर रहा है. विशेष रूप से भारत-आसियान मुक्त व्यापार समझौते और सिंगापुर और मलेशिया के साथ व्यापक आर्थिक सहयोग समझौतों के माध्यम से, लेकिन कुछ APEC सदस्य देश भारत को इस फोरम में शामिल नहीं होने देना चाहते.इस रिप देशों में शामिल सदस्य देशों ने पूर्व वैश्वीकरण युग में भारत के प्रवेश का विरोध किया था. तबसे ही APEC में सदस्यता फ्रीज है जिसके चलते भारत अब तक इसका सदस्य नहीं बन पाया है.वहीं भारत दुनिया सबसे बड़ी आबादी के साथ दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भी है. 1990 के बाद से वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में इसकी हिस्सेदारी दोगुनी से अधिक हो गई है. व्यापार भारत की अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है, 2022 में इसके सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 49 प्रतिशत हिस्सा था जो अब और बढ़ रहा है. ये इंडोनेशिया के बराबर और जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका और कोलंबिया से अधिक है जो 1995 से APEC सदस्यता की मांग कर रहे हैं.APEC का सदस्य बनना भारत को कई मायनों में लाभ पहुंचा सकता है. जैसे घनिष्ठ आर्थिक संबंधों को बढ़ावा मिलेगा, व्यापार और निवेश प्रवाह को सुविधाजनक बनाया जा सकेगा और प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं तक बाजार की पहुंच होगी.व्यापार प्रक्रियाओं और विनियमों को सरल और सुसंगत बनाकर APEC के साथ जुड़ने से भारत के निर्यात को बढ़ावा मिल सकता है. इसके अलावा इससे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को भी आकर्षित करने में मदद मिलेगी और ‘मेक इन इंडिया’ जैसी घरेलू पहल का समर्थन किया जा सकता है.इसकी सदस्यता भारत को सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाने, व्यापार प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने और लेनदेन लागत को कम करने के लिए प्रोत्साहित कर सकती है. भारत APEC के ठोस एक पक्ष वादी विचारों से सीख ले सकता है, जहां सदस्य देश औपचारिक बातचीत के बिना स्वेच्छा से व्यापार उदारीकरण उपायों का प्रस्ताव रखते हैं.वहीं इस फोरम की सदस्यता भारत के लिए सूचना प्रौद्योगिकी, फार्मास्यूटिकल्स, जैव प्रौद्योगिकी, नवीकरणीय ऊर्जा और विनिर्माण जैसे प्रमुख क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की सुविधा भी प्रदान कर सकती है. नई प्रौद्योगिकियों तक पहुंच एपीईसी सदस्यों के बीच एक दूसरे के विचारों का आदान-प्रदान करने और क्षमता निर्माण को बढ़ावा देने के साथ-साथ भारत की प्रतिस्पर्धात्मकता और उत्पादकता को भी बढ़ाएगी.भारत के शामिल होने से APEC सदस्यों को भारत की श्रम शक्ति तक पहुंच बढ़ाने, उपभोक्ता बाजारों का विस्तार करने और अधिक निवेश के अवसर पैदा करने में भी लाभ मिलेगा. बदले में भारत को प्रभावशाली APEC व्यापार सलाहकार परिषद सहित APEC के संसाधनों और इसकी विशेषताओं तक पहुंचने में आसानी होगी. भारत विकासशील देश है जो अपने विकासात्मक हितों से जुड़े विषयों जैसे स्वचालन, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम और महिलाओं की आर्थिक भागीदारी पर चर्चा में भी भाग ले सकता है।