अखिलेश का आरक्षण वाला दांव से बैकफुट पर लौटी बीजेपी?चुनावों में इंडिया गठबंधन को मिलेगा लाभ!

 अखिलेश का आरक्षण वाला दांव से बैकफुट पर लौटी बीजेपी?चुनावों में इंडिया गठबंधन को मिलेगा लाभ!
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सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने 11 दिन बाद एससी-एसटी आरक्षण के वर्गीकरण पर अपनी चुप्पी तोड़ी है. अखिलेश ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध किया है और इसे बीजेपी की चालजाबी बताया है. उन्होंने कहा है कि दलित और आदिवासियों के आरक्षण में किसी भी तरह का बदलाव सपा को मंजूर नहीं है. एससी-एसटी आरक्षण वर्गीकरण के फैसले पर अखिलेश यादव की अचानक सक्रियता से यूपी के सियासी गलियारों में 2 सवाल उठ रहे हैं.पहला, क्या अखिलेश ने मायावती के दबाव में एससी-एसटी आरक्षण के वर्गीकरण पर अपनी चुप्पी तोड़ी है? दूसरा सवाल अखिलेश सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का विरोध कर कौन सा राजनीतिक हित साध रहे हैं?सोशल मीडिया पर लिखे पोस्ट में अखिलेश ने आरक्षण को प्राणवायु और संजीवनी बताया. उन्होंने कहा कि आरक्षण का उद्देश्य समाज का सशक्तीकरण होना चाहिए, न कि उस समाज का विघटन.अखिलेश ने आगे लिखा कि अनगिनत पीढ़ियों से चले आ रहे भेदभाव और मौकों की गैर-बराबरी की खाई चंद पीढ़ियों में आए परिवर्तनों से पाटी नहीं जा सकती. सपा अध्यक्ष ने कहा कि आरक्षण को सशक्त बनाने की जरूरत है न कि इसके प्रावधानों में बदलाव करने की.सपा सुप्रीमो ने आरक्षण के मुद्दे पर बीजेपी को भी घेरा. उन्होंने कहा, बीजेपी सरकार हर बार अपने गोलमोल बयानों और मुकदमों के माध्यम से आरक्षण की लड़ाई को कमजोर करने की कोशिश करती है. यह मुद्दा जब विकराल हो जाता है तो दिखावटी सहानुभूति बटोरने की कोशिश करती है.अपने पीडीए (पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक) फॉर्मूला का जिक्र करते हुए अखिलेश ने कहा- भाजपा पर से 90% पीडीए समाज का भरोसा लगातार गिरता जा रहा है. आरक्षण के मुद्दे पर भाजपा की विश्वसनीयता शून्य हो चुकी है.बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने लखनऊ में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर एससी-एसटी आरक्षण को लेकर सपा और कांग्रेस की रणनीति पर सवाल उठाया था. मायावती ने कहा था कि जो लोग संविधान बचाओ के नाम पर लोगों से वोट ले रहे थे, वो अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर चुप हैं. दलित समुदाय के लोग इन्हें सबक सिखाएंगे.मायावती ने एससी-एसटी आरक्षण के वर्गीकरण मामले में कपिल सिब्बल के पेश होने को लेकर भी अखिलेश ने घेरा. मायावती ने कहा- जिन्हें सपा मुखिया ने राज्यसभा भेजा है, वो सुप्रीम कोर्ट में आरक्षण के खिलाफ दलील दे रहे हैं.देश का सबसे बड़ा सूबा उत्तर प्रदेश में दलितों की आबादी करीब 21 प्रतिशत हैं. इनमें सबसे ज्यादा जाटव (11 फीसद) हैं।

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इसके अलावा पासी करीब 3.5 फीसदी, कोरी करीब 1 फीसद, धोबी करीब 1 फीस और खटिक, धनगर, बाल्मिकी समेत अन्य जातियां 4.5 फीसद हैं.राज्य में लोकसभा की 17 सीटें दलितों के लिए आरक्षित है. यह कुल 80 सीटों का करीब 21 फीसद है. बात विधानसभा की करें तो दलितों के लिए 84 सीटें आरक्षित की गई है. यह भी कुल 403 सीटों का 21 फीसद है.2022 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद अखिलेश यादव ने पीडीए का फॉर्मूला तैयार किया था. 2024 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव का यह फॉर्मूला हिट रहा. इंडिया गठबंधन को दलितों के लिए रिजर्व 17 में से 8 सीटों पर जीत मिली.सीएसडीएस के मुताबिक 2024 के चुनाव में सपा और कांग्रेस गठबंधन को जाटव समुदाय के 25 फीसद और नॉन जाटव दलितों के 56 फीसद वोट मिले. दूसरी तरफ एनडीए गठबंधन को जाटव समुदाय के 24 और नॉन जाट दलित के 29 फीसद वोट मिले.मायावती को जाटव बिरादरी का 44 फीसद वोट तो मिला, लेकिन नॉन जाटव दलित को मायावती साध नहीं पाईं. इस समुदाय के सिर्फ 15 फीसद वोट मिले।

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