कर्पूरी ठाकुर की आज मनाई जा रही है 101वीं जयंती,सादगी से भरा हुआ था पूर्व मुख्यमंत्री का जीवन
कर्पूरी ठाकुर का जन्म तत्कालीन दरभंगा जिले के पितौझिया गांव में हुआ था. इनके पिता गोकुल ठाकुर गांव के सीमांत किसान थे और अपने पारंपरिक पेशा, नाई का काम भी करते थे. 1972 में समस्तीपुर को अलग जिला बना दिया गया है और कालांतर में पितौझिया गांव का नाम भी बदल कर ‘कर्पूरी ग्राम’ कर दिया गया. इस अवसर पर जिला प्रशासन द्वारा विभिन्न कार्यक्रमों की तैयारी जोरों से की जा रही है।स्वर्गीय कर्पूरी ठाकुर को ‘जननायक’ के नाम से जाना जाता है. उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया और 26 महीने तक जेल में रहे. स्वतंत्रता के बाद वह अपने गांव में मिडिल स्कूल में शिक्षक के रूप में कार्यरत हुए और बाद में बिहार विधानसभा के सदस्य बने. कर्पूरी ठाकुर ने बिहार के उपमुख्यमंत्री और मुख्यमंत्री के रूप में भी कार्य किया।
स्वर्गीय कर्पूरी ठाकुर को गरीबों का मसीहा और समाजवादी विचारधारा का प्रबल समर्थक माना जाता था. उन्होंने हमेशा समाज के दबे-कुचले वर्ग के उत्थान के लिए काम किया और उनके हक की आवाज उठाई. उनका सपना था कि कमजोर वर्ग को मुख्यधारा में लाया जाए. उनके राजनीतिक जीवन का आरंभ बिहार के ताजपुर विधानसभा से हुआ, जहां उन्होंने 1952 में पहली बार बिहार विधानसभा में प्रवेश किया. वह समाज के हर वर्ग के लिए काम करने में विश्वास रखते थे।कर्पूरी जी का जीवन एक संघर्षों की दास्तान है. उनका जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था, लेकिन उनकी शिक्षा और संघर्ष ने उन्हें बिहार के एक प्रमुख नेता बना दिया. वह खुद एक शिक्षक थे और उनके शिक्षा के प्रति समर्पण ने उन्हें गांव-गांव में एक प्रेरणास्त्रोत बना दिया. उनके माता-पिता ने कठिनाईयों के बावजूद उन्हें शिक्षा की ओर प्रेरित किया।कर्पूरी ठाकुर का जीवन राजनीति में सादगी और आत्मविश्वास का प्रतीक था. उन्होंने अपनी सुरक्षा को लेकर कभी कोई विशेष चिंता नहीं की और हमेशा आम लोगों के बीच रहने की कोशिश की. उनका मानना था कि एक नेता को जनता के बीच रहकर ही उनकी समस्याओं का समाधान करना चाहिए. यही कारण था कि जब वह मुख्यमंत्री थे, तो अपने सुरक्षा गार्ड्स को निर्देश देते थे कि वह आम लोगों से मिलने के दौरान उनके बीच न आएं।भारत रत्न कर्पूरी ठाकुर के परिवार से जुड़े कई व्यक्तिगत अनुभव भी लोगों के दिलों में बसे हुए हैं. उनके पोते-पोतियों और परिजनों के अनुसार, कर्पूरी जी ने हमेशा परिवार के साथ समय बिताया और उन्हें प्रेरित किया. उनकी पोती, डॉक्टर स्नेहा कुमारी ने बताया कि वह अपने दादा के साथ एंबेसडर कार में सफर करती थीं और बचपन में उनकी सादगी को महसूस किया. उनके दादा की यादें उनके लिए हमेशा विशेष रहेंगी।