कुर्मी समुदाय के सहारे जंगलमहल की राजनीति को साधना चाहती हैं ममता बनर्जी,जानिए क्या है उनकी पूरी रणनीति?

 कुर्मी समुदाय के सहारे जंगलमहल की राजनीति को साधना चाहती हैं ममता बनर्जी,जानिए क्या है उनकी पूरी रणनीति?
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पश्चिम बंगाल में कुर्मी समुदाय को अनुसूचित जनजाति वर्ग में शामिल किए जाने की मांग फिर से तुल पकड़ने लगा है. मंगलवार को बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस मांग का समर्थन किया है. कुर्मी नेताओं के साथ हुई मुलाकात में ममता ने इस मांग पर खुद को गंभीर बताया. उन्होंने कहा कि केंद्र की वजह से यह प्रस्ताव अटका हुआ है.साल 2018 में कुर्मी समुदाय की मांग पर ममता बनर्जी ने केंद्र को प्रस्ताव भेजा था. ममता ने 2023 में भी इस समुदाय की मांग को लेकर केंद्र को पत्र लिखा था. ममता ने अपने पत्र में बताया था कि क्यों इस समुदाय को एसटी वर्ग में शामिल करने की जरूरत है? हालांकि, केंद्र ने कुर्मी समुदाय को एसटी वर्ग में शामिल करने की ममता की मांग पर कोई पहल नहीं की.बंगाल में लंबे वक्त से कुर्मी समुदाय के लोग खुद को एसटी वर्ग में शामिल किए जाने की मांग कर रहे हैं. हाल ही में यह मामला हाईकोर्ट भी गया था और कोर्ट ने केंद्र और राज्य से इसका जवाब मांगा है.कुर्मी समुदाय संस्कृति और पिछड़ेपन के आधार पर खुद को इस वर्ग में शामिल किए जाने की मांग कर रहा है. इन समुदायों का कहना है कि 1950 पहले वे एसटी वर्ग में ही थे, लेकिन 1950 में उन्हें इस वर्ग से हटा दिया गया.साल 2000 के बाद बंगाल और झारखंड के कुछ हिस्सों में कुर्मी को एसटी में शामिल किए जाने की मांग ने जोर पकड़ ली. मांग में नया मोड़ तब आया, जब 2004 में झारखंड की अर्जुन मुंडा की सरकार ने इसको लेकर केंद्र को प्रस्ताव भेजा.मुंडा ने कुर्मी को आदिवासियों में शामिल करने की मांग की थी. हालांकि, केंद्र की यूपीए सरकार ने मुंडा की मांग को खारिज कर दिया. दिलचस्प बात है कि जिस प्रस्ताव को मुंडा ने मुख्यमंत्री रहते केंद्र को भेजा था, वहीं मुंडा केंद्र में अनुसूचित जनजाति विभाग के मंत्री रहते इन मांगों का निपटारा नहीं किया.ममता बनर्जी कुर्मी के समर्थन में खुलकर उतर गई हैं. ऐसे में सवाल उठ रहा है आखिर इसके मायने क्या हैं? बंगाल में कुर्मी समुदाय की आबादी 3-5 प्रतिशत के बीच है. पुरुलिया में इस समुदाय की सबसे ज्यादा 65 प्रतिशत, बांकुरा में 42 प्रतिशत, झारग्राम में 18 प्रतिशत और पश्चिमी मेदिनीपुर में 17 प्रतिशत आबादी है.हालिया लोकसभा चुनाव में इन 4 जिलों की 3 लोकसभा सीट (झारग्राम, बांकुड़ा और मेदिनीपुर) पर ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस को जीत मिली है. हालांकि, जीत का मार्जिन काफी कम था. वहीं पुरुलिया में बीजेपी ने बाजी मार ली.2021 में तृणमूल कांग्रेस को इन सीटों पर बड़ा झटका लगा था. पार्टी को पुरुलिया की 9 में से सिर्फ 3 सीटों पर जीत मिली थी. बीजेपी ने 6 सीटों पर जीत हासिल की थी. इसी तरह बांकुड़ा की 12 में से 8 सीटों पर भारतीय जनता पार्टी ने जीत हासिल की था ।

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बांकुड़ा में तृणमूल को सिर्फ 4 सीटों पर जीत मिली थी.हालांकि, पश्चिमी मेदिनीपुर और झारग्राम में तृणमूल का परफॉर्मेंस ठीक था. तृणमूल ने झारग्राम में क्लीन स्वीप किया तो मेदिनीपुर की 6 में से 5 सीटों पर जीत दर्ज कर ली. कहा जा रहा है कि ममता फिर से कुर्मी के मसले को हवा देकर पुरुलिया और बांकुड़ा का समीकरण साधना चाहती है.बंगाल के पड़ोसी राज्य झारखंड में भी कुर्मी समुदाय का राजनीतिक दबदबा है. यहां पर इसी साल के अंत में विधानसभा के चुनाव होने हैं. ममता ने इस मांग को नए सिरे से हवा देकर झारखंड में भी बीजेपी की मुश्किलें बढ़ दी है.कुर्मी अब तक बीजेपी गठबंधन का कोर वोटर्स रहा है. हालिया चुनाव में कुर्मी बाहुल्य सीट (गिरिडिह, जमशेदपुर, रांची और धनबाद) में बीजेपी ने जीत दर्ज की है.झारखंड में बीजेपी का मुकाबला इंडिया गठबंधन से है. ममता इस गठबंधन में शामिल हैं और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से उनके अच्छे ताल्लुकात हैं।

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