प्रो.स्वामीनाथन को पीएम मोदी ने किया याद,कहा-उनके बदौलत कृषि सेक्टर में शुरू हुआ नया युग

 प्रो.स्वामीनाथन को पीएम मोदी ने किया याद,कहा-उनके बदौलत कृषि सेक्टर में शुरू हुआ नया युग
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प्रोफेसर एम.एस. स्वामीनाथन ने 28 सितंबर को दुनिया को अलविदा कह दिया. भारत की हरित क्रांति के जनक के तौर पर जाने जाने वाले स्वामीनाथन को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने याद किया है. पीएम मोदी ने एक ब्लॉग लिखा है, जिसमें उन्होंने बताया है कि किस तरह देश उनके योगदान को नहीं भुला सकता है. पीएम ने उन्हें किसानों का वैज्ञानिक बताया और कहा कि उनके योगदान की वजह से भारत कृषि में आत्मनिर्भर बन पाया. पीएम मोदी ने लिखा कि देश ने एक ऐसे दूरदर्शी व्यक्ति को खोया है, जिन्होंने भारत के कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन किए. वह 1943 में बंगाल में आए अकाल की वजह से इतना ज्यादा दुखी हुए कि उन्होंने कृषि क्षेत्र में सुधार का कसम खाई. बहुत छोटी उम्र में, वे डॉ. नॉर्मन बोरलॉग के संपर्क में आए और उनके काम को गहराई से समझा. उन्हें अमेरिका से भी ऑफर आए, मगर उन्होंने भारत में रहकर अपने देश के लिए काम करने के बारे में सोचा.अपने ब्लॉग में प्रधानमंत्री मोदी लिखते हैं कि प्रो. स्वामीनाथन ने कई चुनौतियों का सामना किया।

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1960 के दशक की शुरुआत में भारत अकाल से जूझ रहा था. इसी दौरान उनकी दृढ़ प्रतिबद्धता और दूरदर्शिता ने कृषि सेक्टर के एक नए युग की शुरुआत की. उनकी वजह से ही कृषि और गेहूं प्रजनन जैसे विशिष्ट क्षेत्रों में काम हुआ और फिर गेहूं का उत्पादन बढ़ा. उन्हें “भारतीय हरित क्रांति के जनक” की उपाधि मिली, जो बिल्कुल सही भी है. पीएम मोदी ने लिखा कि 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर उनसे मुलाकात हुई. उसी दौर में हमने सॉइल हेल्थ कार्ड की पहल की थी, ताकि मिट्टी के बारे में समझा जा सके. इसी योजना के सिलसिले में मेरी मुलाकात प्रोफेसर स्वामीनाथन से हुई. उन्होंने इस योजना की सराहना की और इसके लिए अपने बहुमूल्य सुझाव भी साझा किए. प्रधानमंत्री बनने के बाद भी मेरी उनसे मुलाकात होती रही. पीएम ने बताया कि मैं उनसे 2016 में इंटरनेशनल एग्रो-बायोडाइवर्सिटी कांग्रेस में मिला. फिर अगले साल 2017 में मैंने उनके द्वारा लिखित दो-भाग वाली पुस्तक श्रृंखला लॉन्च की. बहुत से लोग उन्हें “कृषि वैज्ञानिक” कहते हैं, यानी कृषि के एक वैज्ञानिक, लेकिन, मेरा हमेशा से ये मानना रहा है कि उनके व्यक्तित्व का विस्तार इससे कहीं ज्यादा था. वे एक सच्चे “किसान वैज्ञानिक” थे, यानी किसानों के वैज्ञानिक. उनके दिल में एक किसान बसता था।

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