सावन का पहला सोमवार व्रत आज,जानें शुभ मुहूर्त और पूजन विधि

 सावन का पहला सोमवार व्रत आज,जानें शुभ मुहूर्त और पूजन विधि
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आज सावन महीने का पहला सोमवार है। सावन का महीना और इसमें पड़ने वाले हर एक सोमवार का विशेष महत्व होता है। सावन के महीने में सोमवार का व्रत रखना और शिवजी की विशेष पूजा और अभिषेक करना बहुत ही लाभदायक माना जाता है। इस बार सावन के महीने में कुल 8 सोमवार व्रत रखे जाएंगे। सावन का यह महीना 31 अगस्त तक रहेगा।सभी देवी-देवताओं में शिव जल्द प्रसन्न होने वाले देवता होते हैं। अगर सच्चे मन से इन्हें मात्र एक लोटा जल अर्पित कर दें तो यह भक्त की सभी मनोकामनाओं को पूरा कर देते हैं। शिवजी का पूजा में भस्म एक बहुत ही जरूरी पूजा सामग्री मानी जाती है। शिवपुराण के अनुसार बिना भस्म चढ़ाएं शिव जी की पूजा अधूरी मानी जाती है। mpbreaking32270491 1शिवजी को भस्म चढ़ाने के पीछे पौराणिक कथा है। इस कथा के अनुसार एक बार राजा दक्ष ने अपने राजमहल में एक यज्ञ का आयोजन किया था जहां पर उन्होंने देवी सती के सामने उनके पतिदेव भोलेनाथ का अपमान किया था। शिवजी के अपमान को सुनकर देवी सती ने हवन कुंड में जलकर अपने प्राण त्याग दिए थे। जब यह बात शिव जी को मालूम हुई तब क्रोधित होकर उन्होंने सती की चिता की भस्म को अपने पूरे शरीर में लपेट कर तांडव किया था। तभी से शिव जी को भस्म लगाने की परंपरा शुरू हुई। आज सावन का पहला सोमवार है और शिव मंदिरों में सुबह से ही भारी भीड़ है। शिवलिंग पर शिवभक्त जलाभिषेक करते हुए शिव की कृपा की कामना करते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि शिवलिंग पर जलाभिषेक क्यों किया जाता है। दरअसल सावन के महीने में ही समुद्र मंथन हुआ था जिसमें विष का घड़ा निकला था और इस विष के घड़े को न ही देवता लेना चाह रहे थे और न ही दानव। ऐसे में भगवान शिव ने इस विष का पान करके उसे अपने गले में धारण करके सृष्टि को बचाया था। विष के प्रभाव से भगवान शिव के शरीर का ताप बहुत ज्यादा हो गया था तब शिवजी के शरीर के ताप को कम करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने उन पर जल चढ़ाया था। इस कारण से शिवलिंग पर जल चढ़ाने की परंपरा है। shiv 2 1200शिव जी की आरती-ओम जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव अर्द्धांगी धारा।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे। हंसानन गरूड़ासन
वृषवाहन साजे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
अक्षमाला वनमाला मुण्डमालाधारी।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
मधु कैटव दोउ मारे, सुर भयहीन करे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
लक्ष्मी, सावित्री पार्वती संगा।
पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
पर्वत सोहें पार्वतू, शंकर कैलासा।
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
जया में गंग बहत है, गल मुण्ड माला।
शेषनाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवान्छित फल पावे।।
ओम जय शिव ओंकारा।। ओम जय शिव ओंकारा।।

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