प्राण प्रतिष्ठा से पहले जाति व्यवस्था पर बोले शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती,राजनीतिक लोगों ने फैला दी है ऊंच-नीच

 प्राण प्रतिष्ठा से पहले जाति व्यवस्था पर बोले शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती,राजनीतिक लोगों ने फैला दी है ऊंच-नीच
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अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन में चारों शंकराचार्यों ने आने से मना कर दिया है, जिसे लेकर उन पर काफी सवाल उठाए जा रहे हैं. उन्होंने रामलला की प्राण प्रतिष्ठा में शास्त्रीय विधाओं का पालन नहीं किए जाने की बात कहते हुए समारोह में जाने से मना किया है. इस बीच उत्तराखंड की ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा है कि प्राण प्रतिष्ठा में ब्राह्मण या दलित कोई मुद्दा नहीं है.एक इंटरव्यू में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि जात-पात की बात नहीं है, ये सब राजनीतिक लोगों ने फैला दिया है ऊंच-नीच. उन्होंने कहा कि ब्राह्मण, वैश्य, शूद्र और क्षत्रिय सभी भगवान के अंग हैं और सनातन धर्म में सबको साथ रहना अनिवार्य है.स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा, ‘हमारे यहां धर्म शास्त्र की अपनी विधि है. विधि-विधान के अनुसार सब काम किया जाता है. हमारे यहां शूद्र भी मंदिर बनाते हैं. वैश्य, क्षत्रिय और ब्राह्मण भी मंदिर बनाते हैं. जितने मंदिर बने हैं, सब ब्राह्मणों ने थोड़े ही बनाए हैं. ब्राह्मण वहां जाकर प्रतिष्ठा करता है, वह अलग बात है, लेकिन बनाने वाले चारों वर्णों के लोग होते है.’शंकराचार्य ने आगे कहा, ‘चारों वर्णों के लोग मंदिर बनाते हैं और जब प्रतिष्ठा होती है तो यजमान तो बनते ही हैं, लेकिन उनके अधिकार के अनुसार उसमें व्यवस्था बना दी जाती है. सब करते हैं तो ऐसी कोई जाति वाली बात नहीं है. ये जात-पात वाली बात तो राजनीतिक लोगों ने फैला दी है ऊंच-नीच. हमारे यहां तो सब भगवान के अंग हैं. हम चारों भगवान के अंग हैं. एक भी अंग अगर हमारा खंडित हो जाएगा तो हम विकलांग हो जाएंगे इसलिए ब्राह्मण, वैश्य, क्षत्रिय और शूद्र सबको एक साथ रहना अनिवार्य है सनातन धर्म में.’शंकराचार्य ने कहा, ‘धर्म शास्त्र हमारे जीवन का अंग है और उसके आधार पर ही हम भगवान राम के मंदिर और उनकी प्रतिष्ठा की विधि को जानते हैं. हमने शास्त्रीय प्रश्न उठाए और शास्त्रों में मंदिर को भगवान का शरीर माना गया है.स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा, ‘मंदिर के शिखर के ऊपर जो कलश होता है, शिखर को भगवान के नेत्र और कलश को भगवान का सिर माना गया है. ऐसी परिस्थिति में बिना नेत्र और बिना सिर का जो मंदिर है, वो बिना सिर का धड़ ही है, दिव्यांग ही है. हमारा ये प्रश्न था कि दिव्यांग मंदिर में सकलांग भगवान राम को कैसे बिठा सकते हो आप, उसमें कैसे प्रतिष्ठा कर सकते हो.’शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि सोमनाथ की बात उठाने वालों को यह जानना चाहिए कि सोमनाथ मंदिर प्रतिष्ठा का विषय नहीं है. सोमनाथ में कैसे प्रतिष्ठा हो सकती है वो ज्योतिर्लिंग है और ज्योतिर्लिंग अनादिकाल से चला आ रहा है भगवान स्वयं प्रकट हुए थे, वहां जाकर किसी ने प्रतिष्ठा नहीं की थी इसलिए सोमनाथ की बात नहीं की जा सकती वहां भगवान पहले से विराजमान हैं।

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