कांग्रेस से अलग होगी सपा!बसपा को पहुंचेगी सीधा लाभ

 कांग्रेस से अलग होगी सपा!बसपा को पहुंचेगी सीधा लाभ
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उत्तर प्रदेश के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और सपा ने मिलकर बीजेपी की सारे समीकरण बिगाड़ दिए था. इसी का नतीजा था कि बीजेपी 2024 में सत्ता पर अपने दम पर नहीं पहुंच पाई और सहयोगी दलों के सहारे सरकार बनानी पड़ी. सूबे में सपा 37 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, कांग्रेस एक सीट से बढ़कर 6 पर पहुंच गई. पांच महीने के बाद बदले हुए सियासी माहौल में सपा और कांग्रेस के बीच सियासी दूरियां बढ़ने लगी है. ऐसे में सपा और कांग्रेस का गठबंधन टूटता है तो सियासी लाभ बसपा को मिलने की उम्मीद है.2024 के लोकसभा चुनाव में मिलकर चुनाव लड़ने वाली सपा और कांग्रेस की दोस्ती टूटने के कगार पर पहुंच गई है.

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हरियाणा, महाराष्ट्र के विधानसभा और यूपी उपचुनाव के परिणाम ने कांग्रेस और सपा के रिश्तों में तल्खियां पैदा कर दी थीं, इसके बाद से ही कहा जा रहा कि दोनों के बीच सब ठीक-ठाक नहीं चल रहा है. इसके बाद लोकसभा सदन में सीट आवंटन, संभल हिंसा, अडानी के मुद्दे और इंडिया गठबंधन के नेतृत्व के सवाल पर सपा और कांग्रेस आमने-सामने खड़ी नजर आ रही हैं.लोकसभा चुनाव में मिली सफलता के बाद राहुल गांधी और अखिलेश यादव के बीच संसद से सड़क तक सियासी केमिस्ट्री देखने को मिल रही थी. यूपी में बहराइच कांड हो या फिर अयोध्या मामला हर मुद्दे पर कांग्रेस और सपा एक साथ दिखाई देने की भरसक कोशिश करते रहे, लेकिन संभल मामले में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी का जाने का ऐलान सपा को नगवार गुजरा. सपा के राष्ट्रीय महासचिव रामगोपाल यादव ने कांग्रेस डेलिगेशन के संभल जाने को लेकर सवाल खड़े कर दिए.इंडिया गठबन्धन के नेतृत्व करने के सवाल पर सपा खुलकर ममता बनर्जी के समर्थन में खड़ी नजर आ रही हैं. इसके बाद से ही सवाल उठने लगा है कि सपा और कांग्रेस की दोस्ती क्या 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले ही टूट जाएगी. हालांकि, हरियाणा चुनाव के दौरान ही दोनों के रिश्ते बिगड़ गए थे. सपा को हरियाणा और महाराष्ट्र में कांग्रेस ने सीटें नहीं दी तो सपा ने यूपी उपचुनाव में कांग्रेस की मनमुताबिक सीटें नहीं दीं. इस घटनाक्रम के बाद यह साफ होने लगा है कि कांग्रेस और सपा के रिश्ते सामान्य नहीं रहे. इसके बाद राहुल-प्रियंका के संभल जाने के फैसला सपा को पसंद नहीं आया.नई करवट ले सकती है सियासतकांग्रेस और सपा का गठबंधन टूटता है तो यूपी की सियासत एक नई करवट ले सकती है. लोकसभा चुनाव में संविधान और आरक्षण के मुद्दे पर कांग्रेस-सपा के साथ आए दलित और मुस्लिम वोटों को अपने पाले में करने की कवायद चुनाव के बाद से ही मायावती ने शुरू कर दी है. 2024 में खाता नहीं खोलने वाली मायावती बसपा के खिसके जनाधार को वापस लाने की हरसंभव कोशिश में हैं. आरक्षण के वर्गीकरण का मुद्दा हो या फिर संभल की घटना मायावती ने खुलकर अपनी बात रखी है. इसके अलावा बसपा छोड़कर जाने वाले दलित-पिछड़े और मुस्लिम नेताओं की घर वापसी का प्लान मायावती ने बनाया है.उत्तर प्रदेश की सियासत में बसपा को एक के बाद एक चुनाव में मिल रही हार से पार्टी प्रमुख मायावती हताश हैं. बसपा से खिसके सियासी जनाधार को दोबारा से पाने का मायावती का फार्मूला फेल होता जा रहा है. बसपा को अकेले चुनाव लड़ना भी महंगा पड़ रहा है. माना जा रहा है कि सपा-कांग्रेस का गठबंधन टूटता है तो सबसे ज्यादा खुशी बसपा को होगी. इसके चलते यूपी में नए गठबंधन का विकल्प भी खुल जाएगा. बसपा तेजी से बदले राजनीतिक घटनाक्रम पर नजर बनाए हुए है और अपने लिए सियासी अवसर भी तलाश रही है.राजनीतिक विश्लेषक भी मानते हैं कि वर्तमान में पार्टी को अपना वजूद बचाने और देश की सियासत में अपनी प्रासंगिकता को बनाए रखने के लिए अपना स्टैंड बदलना पड़ेगा. यूपी में 2007 का चुनाव छोड़ दें तो बसपा दूसरे दलों के सहारे की सरकार बनाती रही है. गठबंधन में जब-जब मायावती ने चुनाव लड़ा है, उसे लाभ मिला है. बसपा का अकेले चुनाव लड़ने का दांव भी लगातार यूपी में उलटा पड़ता जा रहा है. 2022 विधानसभा चुनाव में पार्टी को सिर्फ बलिया की रसड़ा विधानसभा सीट पर जीत मिली थी. 2024 के लोकसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं जीत सकी और उपचुनाव में बसपा का खाता खुलना दूर की बात है, उसका अपना सियासी जनाधार भी खिसक गया है.यूपी में गठबंधन से बसपा को भले ही सत्ता हासिल न हो सके, पार्टी के सियासी अस्तित्व बचाने के लिए सांसद और विधायक मिल सकते हैं. मौजूदा दौर में बिना गठबंधन के बसपा का सियासी उभार आसान नहीं है. बीजेपी और सपा जैसी पार्टियां गठबंधन करके राजनीति कर रही हैं तो बसपा को अपना स्टैंड बदलना पड़ेगा. मायावती के अगर अपना जनाधार और बसपा के सियासी अस्तित्व के बचाए रखना है तो गठबंधन की राजनीति पर लौटना पड़ेगा, नहीं तो आगे की राह काफी मुश्किल भरी है.

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