सर्प दंश और कालसर्प दोष से मुक्ति पाने के लिए ऐसे करें नाग देवता की पूजा,नाग पंचमी का दिन है काफी अहम
प्रत्येक जन्म पत्रिका में राहु से केतु सातवें खाने में होता है और काल सर्प दोष का मतलब है सारे ग्रहों का राहु और केतु के एक ही तरफ होना। अतः आपकी जन्मपत्रिका में ऐसी स्थिति बन रही है तो आपको आज नाग पंचमी की पूजा जरूर करनी चाहिए। लेकिन यहां आपको बता दें कि अगर आपकी पत्रिका में कालसर्प दोष नहीं है तब भी आपको आज दिशाओं के क्रम में नागों की पूजा जरूर करनी चाहिए। क्योंकि राहु तो सभी की जन्मपत्रिका में होता है। लिहाजा कालसर्प दोष हो या न हो, राहु संबंधी समस्या की शांति के लिए दिशाओं के सही क्रम में पूजा करना सभी के लिए फायदेमंद साबित होगा।राहु सर्प का मुख है और केतु सर्प की पूंछ है ऐसे में पूजन मुख में करना उचित है। लिहाजा आपको ये देखना है कि आपकी जन्म पत्रिका के किस खाने में राहु बैठा हुआ है और फिर उसी के अनुसार सही दिशा में नाग पंचमी की पूजा करनी है। सबसे पहले आपको एक वर्ग बनाना है। इस वर्ग के अनुसार, ईशान कोण यानि उत्तर-पूर्व दिशा में वासुकी नाग की पूजा करनी चाहिए, पूर्व में तक्षक की, दक्षिण-पूर्व में कालिया की, दक्षिण में मणिभद्र की, दक्षिण-पश्चिम में ऐरावत की, पश्चिम में ध्रतराष्ट्र की, उतर-पश्चिम में कर्कोटक की और उत्तर में धनंजय नामक नाग की पूजा करनी चाहिए। आइए आचार्य इंदु प्रकाश से जानते हैं कि नाग पंचमी के दिन सर्प दंश से मुक्ति पाने के लिए और कालसर्प दोष से छुटकारा पाने के लिए आपको किस प्रकार से और किस दिशा में नागों की पूजा करनी चाहिए।
- अगर आपकी जन्म कुंडली में राहु लग्न में है तो आप अपने घर की पूर्व दिशा में नाग पंचमी की पूजा कीजिए। लेकिन सबसे पहले वासुकी की पूजा ईशान कोण में कीजिए, फिर तक्षक, फिर कालिया और सबसे अन्त में धनंजय की पूजा कीजिए।
- अगर आपकी जन्म पत्रिका में राहु दूसरे खाने में है, तो घर की पूर्व दिशा जहां उत्तरी दिशा से मिलती है, वहां नाग पूजा कीजिए। लेकिन सबसे पहले वासुकी से शुरू कर तक्षक, कालिया, मणिभद्र, ऐरावत, ध्रतराष्ट्र, ककोर्टक और फिर धनंजय की पूजा कीजिए।
- अगर राहु आपकी जन्म पत्रिका के तीसरे स्थान पर है, तो घर की उत्तरी दिशा जहां पूर्व दिशा को छूती है, वहां नाग पूजन कीजिए। लेकिन सबसे पहले वासुकी से शुरू करके क्रमश: तक्षक, कालिया, मणिभद्र, ऐरावत, ध्रतराष्ट्र और ककोर्टक और फिर धनंजय का पूजन करें।
- अगर राहु चौथे घर में हो तो घर की उत्तर दिशा में नाग पूजन करें। लेकिन सबसे पहले वासुकी, फिर धनंजय, पुन: तक्षक, कालिया, मणिभद्र, ऐरावत, ध्रतराष्ट्र और उसके बाद ककोर्टक का पूजन करें।
- अगर आपकी जन्म पत्रिका में राहु पांचवें स्थान पर हैं तो घर की उत्तरी दिशा जहां पश्चिम को छूती हो वहां पर नाग पूजन करें। लेकिन सबसे पहले वासुकी का,उसके बाद ककोर्टक का पूजन करें, फिर धनंजय, तक्षत्र, कालिया, माणिभद्र, एरावत और आखिर में ध्रतराष्ट्र का पूजन करें।
- अगर राहु आपकी जन्म पत्रिका के छठें घर में हो, तो घर की पश्चिम दिशा जहां पर उत्तर दिशा को छूती हो वहां पर नागपूजा करें। लेकिन सबसे पहले वासुकी, फिर ककोर्टक, फिर धनंजय, फिर तक्षक, कालिया, मणिभद्र व ऐरावत और ध्रतराष्ट्र का पूजन करें।
- अगर जन्म पत्रिका के सातवें खाने में राहु हो तो घर की पश्चिम दिशा में नागपूजा करें। लेकिन सबसे पहले वासुकी, फिर ध्रतराष्ट्र, ककोर्टक, धनंजय, कालियाा, मणिभद्र व ऐरावत का पूजन करें।
- अगर राहु आपकी जन्म पत्रिका के आठवें खाने में हो तो, घर की पश्चिम दीवार जहां दक्षिणी दिशा को स्पर्श करती हो वहां पर नाग पूजा करनी चाहिए। सबसे पहले वासुकी, फिर ऐरावत, तब ध्रतराष्ट्र, ककोर्टक, धनंजय, तक्षक, कालिया और मणिभद्र का पूजन करना चाहिये।
- अगर राहु नवें खाने में हो तो दक्षिणी दिशा जहां पश्चिम को छूती हो वहां नागपूजा करें। सबसे पहले वासुकी, फिर ऐरावत, ध्रतराष्ट्र, ककोर्टक, धनंजय, तक्षक, कालिया और मणिभद्र का पूजन करें।
- अगर राहु जन्म पत्रिका के दसवें खाने में हो तो दक्षिण दिशा में नागपूजा करें। लेकिन सबसे पहले वासुकी, फिर मणिभद्र, ऐरावत, ध्रतराष्ट्र, ककोर्टक, धनंजय, तक्षक और फिर कालिया का पूजन करें।