आज है महाशिवरात्रि,जानिए पूजन विधि,शुभ मुहूर्त,आरती और मंत्र

 आज है महाशिवरात्रि,जानिए पूजन विधि,शुभ मुहूर्त,आरती और मंत्र
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आज साल के सबसे बड़े व्रत में से एक महाशिवरात्रि का व्रत रखा जा रहा है. के व्रत में भगवान शिव की पूरे मनोभाव से पूजा की जाती है. माना जाता है कि जो भक्त भगवान शिव और माता पार्वती की प्रदोष व्रत के दिन पूजा करते हैं उन्हें मनचाहे जीवनसाथी का वरदान मिलता है और वैवाहिक जीवन भी सुखमय बनता है. पंचांग के अनुसार, हर साल फाल्गुन मास की त्रयोदशी तिथि पर प्रदोष व्रत रखा जाता है. आज 8 मार्च के दिन ना सिर्फ महाशिवरात्रि बल्कि शुक्र प्रदोष व्रत भी रखा जा रहा है. जानिए किस तरह आज महाशिवरात्रि की पूजा संपन्न की जा सकती है।

शिवरात्रि की पूजा का शुभ मुहूर्त:

महाशिवरात्रि पर पूजा के कई शुभ मुहूर्त पड़ रहे हैं. पहले प्रहर की पूजा 8 मार्च सुबह 6 बजकर 29 मिनट से रात 9 बजकर 33 मिनट के बीच की जाएगी।दूसरे प्रहर की पूजा 8 मार्च सुबह 9 बजकर 33 मिनट से दोपहर 12 बजकर 37 मिनट के बीच होगी.
तीसरे प्रहर की पूजा 9 मार्च के दिन की जाएगी. सुबह के 3 बजकर 40 मिनट से 6 बजकर 44 मिनट तक तीसरे प्रहर की पूजा की जाएगी.
महाशिवरात्रि के चौथे प्रहर की पूजा का मुहूर्त सुबह 3 बजकर 40 मिनट से 6 बजकर 44 मिनट के बीच है।

महाशिवरात्रि की पूजा विधि:

महाशिवरात्रि के दिन सुबह-सवेरे उठकर स्नान किया जाता है और स्नान पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण किए जाते हैं. इसके बाद भगवान शिव का स्मरण करके भक्त शिवरात्रि का व्रत रखते हैं. इसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती के मंत्रों का जाप किया जाता है. इसके बाद भक्त सुबह ही भगवान शिव के दर्शन के लिए शिव मंदिर जाते हैं।शिवरात्रि की पूजा के लिए गन्ने का रस, कच्चा दूध, घी, दही, गंगाजल, धतूरा, बेलपत्र, भांग, धूप, पान के पत्ते, और दीपक समेत फल आदि सामग्री में इकट्ठे किए जाते हैं. महाशिवरात्रि पर शिवलिंग पर दूध या पानी से अभिषेक किया जाता है. इस दूध या पानी में कुछ बूंदे शहद की भी डाली जाती हैं।

भगवान की शिव की आरती:

ओम जय शिव ओंकारा,
स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा,विष्णु,सदाशिव,अर्द्धांगी धारा॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे।
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे। त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला वनमाला मुण्डमालाधारी।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघंबर अंगे।
सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूलधारी। सुखकारी दुखहारी जगपालनकारी॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका। मधु-कैटभ दो‌उ मारे, सुर भयहीन करे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
लक्ष्मी, सावित्री पार्वती संगा। पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
पर्वत सोहैं पार्वती,शंकर कैलासा।
भांग धतूर का भोजन,भस्मी में वासा॥
ओम जय शिव ओंकारा॥

जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला।
शेष नाग लिपटावत,ओढ़त मृगछाला॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
काशी में विराजे विश्वनाथ,नन्दी ब्रह्मचारी। नित उठ दर्शन पावत,महिमा अति भारी॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे।कहत शिवानन्द स्वामी,मनवान्छित फल पावे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
ओम जय शिव ओंकारा॥

महामृत्युंजय मंत्र:

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् |
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ||

मंत्र का अर्थ:

हम त्रिनेत्र को पूजते हैं,जो सुगंधित हैं, हमारा पोषण करते हैं,जिस तरह फल, शाखा के बंधन से मुक्त हो जाता है,वैसे ही हम भी मृत्यु और नश्वरता से मुक्त हो जाएं।

निषादराज से जुड़ी महाशिवरात्रि की कथा:

गरुड़ पुराण के अनुसार एक समय निषादराज अपने कुत्ते के साथ शिकार खेलने गए थे. काफी देर तक जंगल में घूमने के बाद भी उन्हें कोई शिकार नहीं मिला. वे थककर भूख-प्यास से परेशान हो गए और एक तालाब के किनारे बिल्व वृक्ष के नीचे बैठ गए. वहां पर एक शिवलिंग था. अपने शरीर को आराम देने के लिए निषादराज ने कुछ बिल्व-पत्र तोड़े,जो शिवलिंग पर भी गिर गए. अपने पैरों को साफ़ करने के लिए उन्होंने उन पर तालाब का जल छिड़का, जिसकी कुछ बून्दें शिवलिंग पर भी जा गिरीं. ऐसा करते समय उनका एक तीर नीचे गिर गया, जिसे उठाने के लिए वे शिवलिंग के सामने नीचे को झुके. इस तरह शिवरात्रि के दिन शिव-पूजन की पूरी प्रक्रिया उन्होंने अनजाने में ही पूरी कर ली. मृत्यु के बाद जब यमदूत उन्हें लेने आए, तो शिव के गणों ने उनकी रक्षा की और उन्हें भगा दिया. मान्यता है कि जब अज्ञानतावश महाशिवरात्रि के दिन भगवान शंकर की पूजा का इतना अद्भुत फल मिलता है, तो समझ-बूझ कर देवाधिदेव महादेव का पूजन कितना अधिक फलदायी होगा।

वहीं दूसरी कथा के अनुसार माता पार्वती ने शिव को पति के रूप में पाने के लिए घनघोर तपस्या की थी. इसके फलस्वरूप फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था. यही कारण है कि महाशिवरात्रि को अत्यन्त महत्वपूर्ण और पवित्र माना जाता है।

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