चैत्र नवरात्रि का नौवां दिन आज,ऐसे करें मां सिद्धिदात्री की पूजा,जानें शुभ मुहूर्त-मंत्र और पूजन विधि
आज 30 मार्च को महानवमी है, जिसे दुर्गा नवमी भी कहते हैं. चैत्र नवरात्रि के नौवें दिन को महानवमी कहा जाता है. चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को नवरात्रि का नौवां दिन होता है. महानवमी के दिन मां दुर्गा के नौवें स्वरूप मां सिद्धिदात्री की पूजा करते हैं. मां सिद्धिदात्री सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करती हैं. आज के दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा के बाद हवन करते हैं और फिर कन्या पूजा की जाती है. भगवान शिव स्वयं ही मां सिद्धिदात्री की उपासना करते हैं क्योंकि इनकी कृपा से शिव जी को आठ सिद्धियां मिलीं. तिरुपति के ज्योतिषाचार्य डॉ. कृष्ण कुमार भार्गव से जानते हैं मां सिद्धिदात्री की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और योग के बारे में.महानवमी 2023 मां सिद्धिदात्री पूजा मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, 29 मार्च बुधवार को रात 09 बजकर 07 मिनट से चैत्र शुक्ल नवमी तिथि का प्रारंभ हुआ है और आज 30 मार्च को देर रात 11 बजकर 30 मिनट तक नवमी तिथि है. आज पूरे दिन सर्वार्थ सिद्धि योग और रवि योग है. इन दोनों ही योग में महानवमी की पूजा करना शुभ फलदायी है.मां सिद्धिदात्री की पूजा विधि
आज प्रात: स्नान के बाद मां सिद्धिदात्री की मूर्ति या तस्वीर को स्थापित करें. फिर उनको गंगाजल से स्नान कराकर वस्त्र अर्पित करें. सिंदूर, अक्षत्, फूल, माला, फल, मिठाई आदि चढ़ाएं. मां सिद्धिदात्री को प्रसन्न करने के लिए तिल का भोग लगाएं और कमल का फूल अरर्पित करें. इस दौरान आपको ओम देवी सिद्धिदात्र्यै नमः मंत्र का उच्चारण करना चाहिए. इसके बाद मां सिद्धिदात्री की आरती करें. इस पूजन के बाद हवन करें और कन्या पूजा करें. कन्या पूजा के बाद आप प्रसाद ग्रहण करके व्रत का पारण करें.कौन हैं मां सिद्धिदात्री
देवी भागवत पुराण की कथा के अनुसार, भगवान शिव ने 8 सिद्धियों की प्राप्ति के लिए मां सिद्धिदात्री की पूजा की. उनके ही प्रभाव से भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था. तब भगवान शंकर का वह रूप अर्द्धनारिश्वर कहलाया. लाल वस्त्र धारण करने वाली मां सिद्धिदात्री कमल पर विराजती हैं. वे अपने चारों हाथों में शंख, चक्र, गदा ओर कमल पुष्प धारण करती हैं.
मां सिद्धिदात्री की पूजा के फायदे
1. मां सिद्धिदात्री की आराधना करने से व्यक्ति को 8 सिद्धियां और 9 प्रकार की निधियां मिल सकती हैं.
2. मां सिद्धिदात्री की कृपा से व्यक्ति को मोक्ष मिलता है. वह मानव जीवन के जन्म मरण चक्र से मुक्त हो जाता है
मां सिद्धिदात्री के आशीर्वाद से रोग, ग्रह दोष आदि दूर हो जाते हैं. किसी भी व्यक्ति के साथ कोई अनहोनी नहीं होती है।
मां सिद्धिदात्री की आरती:
जय सिद्धिदात्री तू सिद्धि की दाता
तू भक्तों की रक्षक
तू दासों की माता,
तेरा नाम लेते ही मिलती है सिद्धि
तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि
कठिन काम सिद्ध कराती हो तुम
हाथ सेवक के सर धरती हो तुम,
तेरी पूजा में न कोई विधि है
तू जगदंबे दाती तू सर्वसिद्धि है
रविवार को तेरा सुमरिन करे जो
तेरी मूर्ति को ही मन में धरे जो,
तू सब काज उसके कराती हो पूरे
कभी काम उस के रहे न अधूरे
तुम्हारी दया और तुम्हारी यह माया
रखे जिसके सर पैर मैया अपनी छाया,
सर्व सिद्धि दाती वो है भाग्यशाली
जो है तेरे दर का ही अम्बे सवाली
हिमाचल है पर्वत जहां वास तेरा
महानंदा मंदिर में है वास तेरा,
मुझे आसरा है तुम्हारा ही माता
वंदना है सवाली तू जिसकी दाता…
मां सिद्धीदात्री के लिए भोग और मंत्रदुर्गा नवमी पर भक्त मां सिद्धिदात्री को नारियल, खीर, पुआ और पंचामृत का भोग लगाते हैं. इस दिन भक्त कन्या भोज या कन्या पूजा भी करते हैं , और देवी को प्रसाद के रूप में पूरी, हलवा चढ़ाते हैं।
या देवी सर्वभूतेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम।।
मां सिद्धिदात्री की कथा:
पौराणिक कथा अनुसार जब पूरे ब्रह्मांड में अंधकार छा गया था तब उस अंधकार में ऊर्जा की एक छोटी सी किरण प्रकट हुई। ऊर्जा की ये किरण धीरे-धीरे बड़ी होती गई और इसने एक दिव्य नारी का रूप धारण कर लिया। कहते हैं यही देवी भगवती का नौवां स्वरूप मां सिद्धिदात्री थीं।
ऐसा कहा जाता है कि मां सिद्धिदात्री ने प्रकट होकर ब्रह्मा, विष्णु और महेश को जन्म दिया था। कहते हैं भगवान शिव शंकर को जो आठ सिद्धियां प्राप्त थीं वो मां सिद्धिदात्री की कृपा के कारण ही हुआ था। मां सिद्धिदात्री के कारण ही शिवजी का आधा शरीर देवी का हुआ जिससे शिव का एक नाम अर्धनारेश्वर पड़ा।इसके अलावा एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार जब सभी देवी देवता महिषासुर के अत्याचारों से परेशान हो गए थे तब त्रिदेव ने सिद्धिदात्री को जन्म दिया था। जिन्होंने महिषासुर से युद्ध करके उसका वध किया और उसके आतंक से तीनों लोकों को मुक्ति दिलाई।