नवरात्रि का सातवां दिन आज,जानिए मां कालरात्रि का मंत्र,आरती और कथा

 नवरात्रि का सातवां दिन आज,जानिए मां कालरात्रि का मंत्र,आरती और कथा
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आज यानी 21 अक्तूबर को शारदीय नवरात्रि का सातवां दिन है। नवरात्रि के सातवें दिन दुर्गा माता के सातवें स्वरूप मां कालरात्रि की पूजा की जाती है। माता कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है, लेकिन भक्तों को सदैव शुभ फल प्रदान करने वाला है। इन्हें शुभंकरी भी कहा जाता है। मां कालरात्रि का वाहन गर्दभ यानी गधा है, जो सभी जीव-जंतुओं में सबसे ज्यादा मेहनती माना जाता है। मां कालरात्रि अपने इस वाहन पर पृथ्वीलोक का विचरण करती हैं। मां कालरात्रि की पूजा करने से अकाल मृत्यु का भय खत्म हो जाता है। इनकी पूजा मात्र करने से समस्त दुखों एवं पापों का नाश हो जाता है। साथ ही इनकी आरती करने और मंत्र जपने से जीवन में खुशियां आती हैं।

मां कालरात्रि के मंत्र:

दंष्ट्राकरालवदने शिरोमालाविभूषणे. चामुण्डे मुण्डमथने नारायणि नमोऽस्तु ते..या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता. नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः..

मां कालरात्रि की आरती:

कालरात्रि जय-जय-महाकाली ।

काल के मुह से बचाने वाली ॥

दुष्ट संघारक नाम तुम्हारा ।

महाचंडी तेरा अवतार ॥

पृथ्वी और आकाश पे सारा ।

महाकाली है तेरा पसारा ॥

खडग खप्पर रखने वाली ।

दुष्टों का लहू चखने वाली ॥

कलकत्ता स्थान तुम्हारा ।

सब जगह देखूं तेरा नजारा ॥

सभी देवता सब नर-नारी ।

गावें स्तुति सभी तुम्हारी ॥

रक्तदंता और अन्नपूर्णा ।

कृपा करे तो कोई भी दुःख ना ॥

ना कोई चिंता रहे बीमारी ।

ना कोई गम ना संकट भारी ॥

उस पर कभी कष्ट ना आवें ।

महाकाली मां जिसे बचाबे ॥

तू भी भक्त प्रेम से कह ।

कालरात्रि मां तेरी जय ॥

मां कालरात्रि की कथा:

कालरात्रि को काली का ही रूप माना जाता है. काली मां इस कलियुग मे प्रत्यक्ष फल देने वाली हैं. काली, भैरव तथा हनुमान जी ही ऐसे देवी व देवता हैं, जो शीघ्र ही जागृत होकर भक्त को मनोवांछित फल देते हैं. काली के नाम व रूप अनेक हैं. किन्तु लोगों की सुविधा व जानकारी के लिए इन्हें भद्रकाली, दक्षिण काली, मातृ काली व महाकाली भी कहा जाता है।दुर्गा सप्तशती में महिषासुर के वध के समय मां भद्रकाली की कथा वर्णन मिलता है कि युद्ध के समय महाभयानक दैत्य समूह देवी को रण भूमि में आते देखकर उनके ऊपर ऐसे बाणों की वर्षा करने लगा, जैसे बादल मेरूगिरि के शिखर पर पानी की धार की बरसा रहा हो. तब देवी ने अपने बाणों से उस बाण समूह को अनायास ही काटकर उसके घोड़े और सारथियों को भी मार डाला. साथ ही उसके धनुष तथा अत्यंत ऊंची ध्वजा को भी तत्काल काट गिराया. धनुष कट जाने पर उसके अंगों को अपने बाणों से बींध डाला. और भद्रकाली ने शूल का प्रहार किया. उससे राक्षस के शूल के सैकड़ों टुकड़े हो गये, वह महादैत्य प्राणों से हाथ धो बैठा।

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