दलित वोट बैंक को साधने के लिए सीएम नीतीश का नया दांव क्या होगा कामयाब?पहले ‘जरासंध’ और आज ‘भीम’ की शरण में नीतीश
जातीय वोटों को अपने पाले में करने की होड़ हर पार्टी में दिख रही। इन दिनों बिहार की राजनीति में ये काफी सक्रियता के साथ रास्ता ढूंढ रही है। कोई भी दल इस अभियान में बढ़-चढ़ कर ही हिस्सा ले रहा। जेडीयू भी इस मामले में किसी से पीछे नहीं है। जदयू के भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी ने इस कड़ी में दलित और महादलित को महागठबंधन के पक्ष में करने के लिए आज भीम संसद का आयोजन कर डाला है। हालांकि यह आयोजन पहले ही होने वाला था पर विधानसभा सत्र को ध्यान में रख कर इसकी तारीख बढ़ाकर आज यानी 26 नवंबर रखी गई।इस भीम संसद के जरिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चाहते हैं कि जब तक दलितों की बड़ी आबादी को राजनीतिक और आर्थिक रूप से मजबूत नहीं किया जाएगा, तब तक उनका संपूर्ण विकास नहीं हो पाएगा।
दलितों के सर्वांगीण विकास के बिना 21वीं सदी के बिहार का निर्माण संभव नहीं हो पाएगा। भीम संसद समाज के अंतिम तबके के लोगों के उत्थान के लिए हमेशा सक्रिय और सतत चिंतनशील भी रहेगा। यह महज 22 फीसदी वाले एससी और एसटी की चिंता के साथ विकसित बिहार की भी चिंता है।हालांकि नीतीश कुमार की दलित मतों को साधने में कितनी सफलता मिलेगी वह तो आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनाव के दौरान पता चलेगा। फिलहाल राजनीतिक गलियारों में भीम संसद को लेकर यही कहा जा रहा है कि यह अन्य दलों की ओर से किए गए जातीय सम्मेलन के विरुद्ध जेडीयू की दलितों के बीच पैठ बनाने की मुहिम है।